वृश्चिक लग्न की कुंडली में गुरु दुसरे और पांचवें भाव के मालिक होकर एक योगकारक गृह बनते हैं, शुभ फल फल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । वहीँ राहु अपनी मित्र राशि में शुभ फलप्रदायक होते हैं और शत्रु राशि में अशुभ । राहु के मित्र राशिस्थ होने पर सम्बंधित भाव के स्वामी की स्थिति देखना भी अनिवार्य है, यानी जिस भाव में राहु हैं उस भाव के मालिक कहीं छह, आठ अथवा बारहवें भाव में तो स्थित नहीं है, या किसी अन्य कारण से कमजोर तो नहीं है । यदि ऐसा है तो राहु की दशाओं में शुभ परिणाम प्राप्त नहीं होते । आइये विस्तार से जानते हैं गुरु व् राहु की युति से किन भावों में बनता है गुरुचण्डाल योग, किस गृह की की जायेगी शांति….
वृश्चिक राशि राहु देवता की नीच राशि है । प्रथम भाव में स्थित होने पर राहु गृह की शांति अनिवार्य है । गुरु की दशाओं में जातक को शुभ फल प्राप्त होते हैं, प्रेम विवाह का योग बनता है ।
धनु राशि भी राहु की नीच राशि है । अतः इस भाव में आकर राहु अपनी दशाओं में अशुभ फल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । राहु की शांति अनिवार्य है । स्वराशिस्थ गुरु की दशाओं में शुभ फल प्राप्त होते हैं ।
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मकर राशि गुरु देव की नीच राशि है । यह मुख्य वजह है की गुरु की दशाओं में अशुभ फल प्राप्त होते हैं । वहीँ राहु की दशाओं में भी जातक की परेशानियां बहुत बढ़ी हुई ही रहती हैं साथ ही कुछ छोटे मोटे लाभ होते हैं । गुरु की शांति अनिवार्य है ।
कुम्भ राशि में आकर दोनों गृह अपनी दशाओं में शुभ फलदायक होते हैं । किसी भी गृह की शांति नहीं करवाई जायेगी ।
स्वराशिस्थ गुरु अपनी दशाओं में शुभ फल प्रदान करते हैं । राहु की दशाएं शुभफलप्रदायक नहीं होती हैं । राहु की शांति करवाई जाती है अन्यथा राहु की दशाओं में जातक के साथ साथ संतान व् बड़े छोटे भाई बहन को भी कष्ट होता है और गुरु के शुभ फलों में भी कमी आती है ।
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इस भाव में गुरु व् राहु दोनों की दशाएं अशुभ फलकारी हैं । दोनों की शांति अनिवार्य है ।
सप्तम भाव में दोनों ग्रहों को दशाएं शुभ फलदायक होती हैं । किसी भी गृह का उपाय नहीं करवाया जाना चाहिए ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । आठवाँ भाव वैसे ही भौतिक दृष्टि से शुभ नहीं कहा गया है । गुरु व् राहु भी इस भाव में अशुभता में ही वृद्धिकारक होते हैं । इस वजह से यहाँ स्थित होने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति करवाई जाती है ।
नवम भाव में मित्र राशिस्थ गुरु शुभफलदायक होते हैं । राहु की शांति करवाई जायेगी अन्यथा गुरु की दशाओं में शुभ फलों में कमी आती है ।
दशम भाव में राहु के स्थित होने पर राहु की दशाओं में बहुत अशुभ फल प्राप्त होते हैं । राहु की शांति करवाई जानी अनिवार्य है । गुरु की दशाएं शुभ फलदायक होती हैं । यदि समय रहते राहु की शांति करवा ली जाए तो गुरु की दशाओं में बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं ।
ग्यारहवें भाव में आने पर राहु व् गुरु दोनों की दशाएं शुभ फलदायक होती हैं । दोनों ग्रहों की दशाओं में प्रेम विवाह के योग बनते हैं । पुत्र संतान प्राप्त होती है । बड़े छोटे भाई बहन से संबंधों में मधुरता रहती है । चित्त प्रसन्न रहता है ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । इस भाव में आने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति अनिवार्य है ।
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