जिन व्यक्तियों के जन्म समय में चन्द्रमा सिंह लगन मे होता है, वे सिंह राशि के जातक कहलाते हैं । इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक है। दिशा पूर्व, चिन्ह शेर, स्वभाव स्थिर, तत्व अग्नि, राशि सिंह व् वर्ण क्षत्रिय होता है । इन तत्वों के आधार पर हम सिंह लग्न के जातकों के बारे में चर्चा करने का प्रयास करेंगे । आज हम सिंह लग्न के जातक का व्यक्तित्व, विशेषतायें, शुभ अशुभ गृह सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करेंगे जो इस प्रकार है ।
सामान्य तौर पर इनका सीना चौड़ा होता है! चाल गर्वीली होती है! किसी से आज्ञा लेना , या अधीनस्त रहना पसंद नहीं करते! इन्हें आज्ञा देना पसंद होता है! कुशल प्रबंधक होते हैं व् सरकारी नौकरी के कारक माने जाते हैं! अक्सर शांत बने रहते हैं, और यदि किसी से उलझ जाएँ तो प्रतिद्वंदी को धूल चटाने में जरा देर नहीं करते! इन्हें काम खाने व् घूमने का बहुत शौक होता है!
सिंह राशि के जातक को आराम करना पसंद होता है । स्थिर स्वभाव का होने की वजह से ये किसी भी कार्य को करने में जल्दबाजी नहीं दिखते हैं । आपने जंगल के शेर को यदि देखा हो तो जानते होंगे की शेर जंगल का राजा होता है, इसे किसी तरह की छेड़खानी पसंद नहीं होती है व् इसके के लिए शिकार भी शेरनी करती है । ये केवल बैठ कर खाना पसंद करता है । अग्नि तत्त्व व् क्षत्रिय वर्ण केवल तभी देखने को मिलता है जब शेर के परिवार पर कोई खतरा हो! शेर की प्लानिंग इस तरह देखि जा सकती है की ये शिकार के लिए ऐसे जानवर को ढूंढ़ता है जो कमजोर हो, इसके समीप हो! फिर कुछ ही पलों में शिकार करके काम तमाम कर देता है व् आराम से बैठ जाता है! सिंह लग्न के जातक यदि उच्च पदासीन हों तो अपने सूबोर्डिनेट्स का ध्यान रखते हैं! मुसीबत में इनका साथ देते हैं व् मुश्किल समय में लिए गए इनके निर्णय सटीक साबित होते हैं! इन्ही गुणों से इनके मैनेजमेंट स्किल्स की सराहना की जाती है ।
सिंह लग्न के अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वाफ़ाल्गुनी के चारों चरण, और उत्तराफ़ाल्गुनी का पहला चरण आता है। इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक है ।
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक गृह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
सूर्य :
लग्नेश होने से कारक गृह बनता है ।
मंगल :
चतुर्थेश , नवमेश है । इस लग्न कुंडली में अति योगकारक होता है ।
गुरु :
पंचमेश , अष्टमेश होने से कारक गृह बनता है ।
शुक्र :
तृतीयेश , दशमेश है । अतः सम गृह बनता है ।
सिंह लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Sinh Lagn – Leo Ascendant
बुद्ध :
दुसरे व् ग्यारहवें का मालिक होने से इस लग्न कुंडली में मारक गृह बनता है ।
शनि :
छठे , सातवें का मालिक है व् लग्नेश का अति शत्रु होने से मारक गृह बनता है ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।