शनि देव की छाया कहे जाने वाले राहु कुंडली में शुभ स्थित होने पर जातक को मात्र भक्त, शत्रुओं का पूर्णतया नाश करनेवाला, बलिष्ठ, विवेकी, विद्वान, ईश्वर के प्रति समर्पित, समाज में प्रतिष्ठित व् धनवान बनाता है । इसके विपरीत यदि राहु लग्न कुंडली में उचित प्रकार से स्थित न हो तो अधिकतर परिणाम अशुभ ही प्राप्त होते हैं । वृष और मिथुन राहु देवता की उच्च राशियां हैं और वृश्चिक व् धनु राहु की नीच राशियां मानी जाती हैं । राहु ५,७,९ दृष्टि से देखते हैं । आज हम मीन लग्न की कुंडली के विभिन्न भावों में राहु के परिणाम जानने का प्रयास करेंगे ……..
कुम्भ राशि में लग्न में राहु हो तो राहु की महादशा में स्वास्थ्य उत्तम नहीं रहता है, संतान प्राप्ति में विलम्ब का योग बनता है, अचानक हानि की संभावना बनती है । दाम्पत्य जीवन में कलह रहती है, साझेदारी के काम से हानि होती है, पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते हैं, जातक नास्तिक, विदेश यात्राएं करने वाला होता है ।
यहाँ राहु के स्थित होने पर धन, परिवार कुटुंब का साथ नहीं मिलता है, जातक प्रतियोगिता मे असफल होता है । रुकावटें दूर होने का नाम नहीं लेती हैं । प्रोफेशनल लाइफ में बहुत समस्याएं आती हैं । जातक अपनी वाणी से अपने लिए समस्याएं खड़ी कर लेता है ।
राहु की महादशा में यात्राएं करनी पड़ती हैं, परिश्रम बढ़ जाता है। दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है, साझेदारी के काम में लाभ मिलता है । जातक का भाग्य उसका साथ देता है । पिता से सम्बन्ध मधुर रहते है, विदेश यात्राएं करता है, बड़े भाई बहन से प्रेम , सौहार्द बना रहता है, लाभ प्राप्त करता है ।
चतुर्थ भाव में आने से जातक को भूमि, मकान, वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता है । रुकावटें दूर होती हैं । काम काज बेहतर स्थिति में रहता है । विदेश सेटलमेंट व् विदेश से लाभ की सम्भावना बनती है ।
देर से संतान प्राप्ति का योग बनता है, अचानक हानि प्राप्ति की स्थिति बनती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध उत्तम नहीं रहते हैं । पिता से नहीं बनती है, लाभ प्राप्त नहीं होता है । जातक विदेश यात्राएं करता है । माइंड पावर वीक होती है, जल्दी डिप्प्रेशन का शिकार हो जाता है ।
छठे भाव में स्थित होने से कोर्ट केस, हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रोफेशनल लाइफ खराब होती जाती है । वाणी खराब, परिवार का साथ नहीं मिलता है । धन का अभाव बना रहता है । अपनी महादशा में जातक घर से दूर रहता है ।
यहां राहु से मिलने वाले परिणामों में शुभता आ जाती है । जातक कुशाग्र बुद्धि, मेहनती होता है, छोटे – बड़े भाई बहनो और परिवार का साथ पाता है । पत्नी और साझेदारों से संबंध उत्तम होते हैं । लाभ प्राप्त होता है । यदि बुद्ध की स्थिति ठीक न हो तो विवाह देरी से होने का योग बनता है ।
यहां राहु के अष्टम भाव में स्थित होने से जातक के हर काम में रुकावट आती है । राहु की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है । अपनी वाणी से संबंध खराब होते हैं, फिजूल खर्चा होता है, परिवार का साथ नहीं मिलता है । सुख सुविधाओं का अभाव रहता है, माता से संबंधों में कटुता आ जाती है । विदेश सेटलमेंट हो सकती है । जातक को धन का आभाव लगा ही रहता है ।
जातक बोल्ड पर्सनालिटी का स्वामी नहीं होता है । जातक पितृभक्त नहीं होता है । राहु की महादशा में देर से संतान प्राप्ति का योग बनता है । मेहनत का उचित फल नहीं मिलता है। पिता का सहयोग प्राप्त नहीं होता है, लाभ प्राप्त नहीं होता है । भाग्य जातक का साथ नहीं देता है । छोटे भाई बहन से भी संबंधों में मधुरता नहीं रहती है । उच्च शिक्षा प्राप्ति का योग नहीं बनता है, स्वास्थ्य उत्तम नहीं रहता है । प्रेम संबंधों में असफलता मिलती है, पेट खराब रहता है ।
मंगल की महादशा में जातक को भूमि, मकान, वाहन के पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होते है । माता से जातक का मन मुटाव रहता है । काम काज बहुत खराब स्थिति में आ जाता है । परिवार जातक का साथ नहीं देता है, प्रतियोगिता-कोर्ट केस में हार होती है । राहु की महादशा में जातक का काम काज सेटल नहीं हो पाता है, नौकरी करके घर का गुजारा चलता है और नौकरी में भी परेशानी बनी रहती है ।
यदि शनि शुभ स्थित हों तो बड़े भाई बहनो से स्नेह – सहायता प्राप्त होगी । छोटे भाई बहन से सम्बन्ध उत्तम रहते हैं । राहु की महादशा में अचानक लाभ होता है, संतान को / से प्रसन्नता मिलती है । पत्नी से सम्बन्ध मधुर रहते हैं और साझेदारी से लाभ प्राप्त होता है । शनि के अशुभ स्थित होने पर राहु के शुभ फलों में बहुत कमी जाननी चाहिए ।
कम्पटीशन में असफलता हाथ लगती है, भूमि, मकान, वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । विदेश यात्रा, सेटलमेंट का योग बनता है । सभी कार्यों में रूकावट आती है और टेंशन-डिप्रेशन लगातार बना रहता है । जातक के घर से दूर रहने का योग बनता है, विदेश में जेल या जेल सामान कष्ट प्राप्त होने का योग बनता है । नौकरी करके जातक जीवन यापन करता है ।
राहु के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । राहु के ३,६,८,१२ भाव में स्थित होने पर या शत्रु के घर में स्थित होने पर, नीच राशि वृश्चिक, धनु में स्थित होने पर गौमेध रत्न कदापि धारण न करें । राहु देवता के मित्र राशि में स्थित होने पर मित्र राशि के स्वामी की स्थिति देखना न भूलें और राहु केतु से संबंधित रत्न किसी योग्य विद्वान की सलाह के बाद ही धारण करें ।