मां दुर्गा की कहानी maa durga story

मां दुर्गा की कहानी Maa Durga Story

  • Jyotish हिन्दी
  • no comment
  • अध्यात्म-धर्म, ज्योतिष विशेष
  • 2215 views
  • माँ दुर्गा Maa Durga :

    आनंदेशवर, अर्धनारेश्वर, सदाशिव, परमेश्वर का आधा अंग पार्वती ही माँ दुर्गा Ma Durga हैं । शिव की अर्धांगिनी को माँ गौरा, दुर्गा, सम्पूर्ण जगत की माँ जगदम्बा, शेरांवाली माँ आदि अनेक नामों से ध्याया जाता है, इनकी पूजा अर्चना की जाती है । शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री माँ दुर्गा के नौ रूप हैं । इन विभिन्न आयामों के द्वारा माँ अपने भक्तों को अभय प्रदान करती है ।




    माता के आत्मदाह की कथा :

    सतयुग में राजाओं के देवता दक्ष के यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ । इस कन्या को दक्षायनी नाम से पुकारा जाता था । शिव की शक्ति इस कन्या को कालांतर में माँ सती और माँ पार्वती आदि नामों से पुकारा जाने लगा । साधकों के मत से जब माँ दक्षायनी ने अपने पिता के यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था तभी से माँ को सती कहा गया, और जब माँ ने पर्वतों के राजा ( पर्वतराज ) के यहाँ जन्म लिया तब माँ का नाम पार्वती हुआ ।

    माँ शिव को अपना वर मान चुकी थी । भोलेनाथ को प्रसन्न करने हेतु माँ ने घोर तप किया । परन्तु प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री का ब्याह शिव से नहीं करना चाहते थे । पुत्री की हठ से हार मान दक्ष ने विवाह के लिए हामी तो भर दी, परन्तु विवाह दक्ष की अनिच्छा से ही हुआ ।

    Also Read: छिन्नमस्तिका माता की कहानी Chinnamasta Mata Story

    कुछ समय पश्चात् दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया, परन्तु इस यज्ञ में अपनी ही पुत्री और शिव को आमंत्रित नहीं किया । माँ अपने माता पिता के घर जाना चाहतीं थीं सो शिव को अपने मन की बात कही । भोलेनाथ ने बिना आमंत्रण के जाने से इंकार किया और माँ को भी समझाया की उनका इस प्रकार जाना उचित नहीं होगा । परन्तु पुत्री के लिए तो पिता का घर हमेशा खुला रहता है और अपने पिता के घर जाने के लिए आमंत्रण की आवश्यकता थोड़े ही होती है, ऐसा जान माँ चली गयी । माँ के मायके पहुँचने पर दक्ष ने माँ के सामने ही शिव के सम्बन्ध में अनेक अपमानजनक बातें कहीं । माँ सती का भी अपमान किया और शिव शंकर का घोर अनादर किया । अपने ही पिता द्वारा स्वयं व् शिव के अपमान से माँ अत्यंत आहत हुईं और माँ सती ने दक्ष के यज्ञ ककुण्ड में ही अपने प्राण त्याग दिए । ध्यानस्थ शिव को इस घटना का आभास हो गया । शिव माँ के आत्मदाह से अत्यंत व्यथित हो गए । जल्द ही इस व्यथा ने क्रोध का रूप धारण कर लिया और शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर दक्ष के यज्ञ को तहस नहस कर दिया । जिन राजाओं और ऋषियों ने दक्ष का साथ दिया और शिव का उपहास उड़ाया था उन्हें दण्डित किया और प्रजापति की गर्दन को धड़ से अलग कर प्राणदंड दिया ।



    दुःख व् पीड़ा के आवेश में क्रोधित शिव सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर धरती पर घूमने लगे । इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, कालांतर में उन स्थानों पर शक्तिपीठों का सृजन हुआ । जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया ।

    माँ का रूप :

    एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल, पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों के हार सुशोभित हैं । माता शेर की सवारी करती है ।

    माता की प्रार्थना :

    प्रार्थना का कोई नश्चित फॉर्मेट नहीं है । कोई इसे ह्रदय की पुकार कहता है । किसी के लिए मौन रह जाना ही प्रार्थना है । आप जाने आपकी साधना जाने ।

    माता का तीर्थ :

    शिव के धाम कैलाश पर्वत में मानसरोवर के समीप माता का धाम बतलाया जाता है । यहाँ माँ दक्षायनी साक्षात विराजमान हैं ।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Popular Post