आज हम जानेंगे की मिथुन लग्न की कुंडली में 12 भावों में मंगल कैसे फल प्रदान करते हैं । यहां मंगल षष्ठेश, एकादशेश होने से एक मारक गृह हैं । मंगल की 4, 7, 8वीं दृष्टि होती है और कर्क राशि मंगल की नीच राशि व् मकर उच्च मानी जाती है। मिथुन लग्न कुंडली में अगर मंगल बलवान ( डिग्री से भी ताकतवर ) होकर स्थित हो तो समस्त कुंडली में अधिकतर फल अशुभ ही प्राप्त होते हैं । यहां बताते चलें की कुंडली के 6, 8, 12 भावों में जाने से योगकारक गृह भी अपना शुभत्वखो देते हैं और खराब परिणाम देने के लिए बाध्य हो जाते हैं । केवल विपरीत राज योग की कंडीशन में हो 6, 8, 12 भावों में पड़े गृह शुभ फल प्रदान करने की स्थिति में आते हैं । यदि लग्नेश बुद्ध बलवान होकर शुभ स्थित हों तो मंगल 6, 8, 12 भाव में कहीं स्थित होने पर शुभ परिणाम कारक हैं । मिथुन लग्न की कुंडली के जातक को किसी भी सूरत में मंगल रत्न मूंगा धारण नहीं करना चाहिए । ध्यान दें की कारक ग्रह का बलाबल में सुदृढ़ होना और शुभ स्थित होना उत्तम जानना चाहिए और मारक गृह का बलाबल में कमजोर होना उत्तम जानें । कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न सेबलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है, कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आइये मिथुन लग्न कुंडली के 12 भावों में मंगल देव के शुभाशुभ प्रभाव को जान्ने का प्रयासकरते हैं :
लग्नेश बुद्ध के अति शत्रु मंगल यदि लग्न में ही विराजमान हो जाएँ तो जातक हर काम में जल्दबाजी करने वाला होता है , बड़े भाई बहनो के सुख में कमी आती है , माता से मन मुटाव रहता है , पत्नी से नहीं बनती है और हर शुभ काम में देरी होती है । मंगल की महादशा में टेंशन बानी ही रहती है । जातक के विदेश सैटलमेंट केयोग बनते हैं
यहां कर्क राशि में आने से मंगल नीच के हो जाते हैं । धन , कुटुंब , परिवार या कह लीजिये सराउंडिंग्स लिए बहुत अच्छा नहीं होता , वाणी बहुत खराब होती है।यदि मंगल अच्छी डिग्री में हो तो ऐसे जातक के परिवार में आने के बाद से घर की समस्याओं में बढ़ौतरी होती है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है , पेट खराब , संकल्पशक्ति क्षीण , मन अशांत रहता है । हर काम में रुकावट आती है । जातक धर्म को नहीं मानता , पिता से संबंध में खटास आती है , विदेश यात्रा का योग बनता है ।
यद्यपि तीसरा घर मंगल का कारक भाव होता है परन्तु और अधिकतर अशुभ परिणाम ही देते हैं । मेहनत के उचित परिणाम नहीं मिलते हैं । जातक धर्म को नहींमानता , पिता से संबंध में खटास आती है , विदेश यात्रा का योग बनता है , प्रोफेशनल लाइफ में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है । छठा भाव मंगल काकारक भाव होने से प्रतियोगिता में विजयी बनाते हैं ।
यहाँ सीने में कोई रोग उत्पन्न हो सकता है । प्रॉपर्टी लेने में, सुख सुविधाओं के साधन जुटाने में प्रॉब्लम आती है, माता से मन मुटाव रहता है । पत्नी का साथमिलता है, पार्टनरशिप से लाभ की संभावना रहती है, काम काज में समस्याएं, बड़े भाई बहन का साथ ना मिलना व् इनसे परेशानी मिलती है । मंगल की महादशा / अंतर्दशा में आठवीं दृष्टि ( स्वयं स्वामी ) ग्यारहवें भाव पर पड़ने से लाभ अर्जित होता रहता है ।
पुत्र प्राप्ति का योग बनता है परन्तु पुत्र प्राप्ति में देरी होती है । पेट खराब , मन खिन्न रहता है , आकस्मिक धन हानि होती है , हर काम में रुकावट आती है , टेंशन – डिप्रेशन बना रहता है, बड़े भाई बहन से प्रॉब्लम रहती है , फिजूल खर्च होता है ।
स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्याएं बनी रहती हैं, लड़ाई झगडे लगे रहते हैं , कोर्ट कैसे से संबधित समस्याएं लगी रहती हैं । पिता से मन मुटाव लगा रहता है और धन हानि की संभावना बनी रहती है । विदेश यात्रा का योग बनता है । बड़े भाई बहनो को प्रॉब्लम , संतान को प्रॉब्लम आती है । यदि बुद्ध बलि हों तो विपरीत राजयोग बनता है और छठे भाव में स्थित मंगल शुभ परिणामकारी होते हैं ।
जातक पत्नी व् अन्य साझेदारों से अशुभ फल प्राप्त करने वाला होता है । प्रोफेशनल लाइफ पर बुरा असर पड़ता है , मन अशांत रहता है , वाणी खराब हो जाती है , परिवार का साथ नहीं मिलता है ।
परेशानियां लगातार बनी रहती हैं , परिश्रम के उचित परिणाम नहीं मिलते हैं , लाभ में कमी आती है , वाणी खराब हो जाती है , पत्नी बीमार रहती है , परिवार से नहींबनती ऐसे जातक को परिश्रम केअनुकूल परिणाम नहीं प्राप्त होते हैं । यदि बुद्ध बलि हों तो विपरीत राजयोग बनता है और आठवें भाव में स्थित मंगल शुभपरिणामकारी होते हैं ।
जातक धार्मिक, पिता का आदर करने वाला नहीं होता , पत्नी का सुख मिलता है, साझेदारी से लाभ की संभावना रहती है, विदेशों यात्रा / सेटलमेंट का योगबनता है , परिश्रमी का फल अल्प मात्रा में मिलता हैं, सुख सुविधाओं में कमी आती है । माता को परेशानी बनी रहती है । सीने में विकार आने की संभावना रहती है। मंगल की महादशा में पिता बीमार रहते हैं ।
प्रोफ्रेशनल लाइफ में परेशानियां आती है, सुख सुविधाओं में कमी आती है , पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । पेट खराब, मन खिन्न रहता है, आकस्मिक धन हानिहोती है । माता, बड़े भाई बहन और संतान को परेशानी बनी रहती है । सीने में विकार आने की संभावना रहती है ।
यहां मंगल देवता के आने से लाभ की संभावनाएं बनती हैं । बड़े भाई बहनो से लाभ मिलता है । स्वस्थ्य संबंधी समस्याएं बनी रहती हैं, धन, परिवार, कुटुंब का साथ नहीं मिलता है , मन खिन्न रहता है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । कोर्ट केस कॉम्पिटिशन में जीत होती है।
यदि बुद्ध बलि हों तो विपरीत राजयोग बनता है और 12वें भाव में स्थित मंगल शुभ परिणामकारी होते हैं अन्यथा द्वादश भाव में आने से व्यय बढ़ते हैं, मेहनत मेंइजाफा होता है, ऋण, रोग, शत्रु, बढ़ जाते हैं , पत्नी – पार्टनर से समस्या व् व्यवसाय में भी परेशानियां उठानी पड़ती हैं । केवल विपरीत राजयोग की स्थिति मेंपरिणाम शुभ जानने चाहियें ।
कुंडली का उचित विश्लेषण आवश्य करवाएं तदुपरांत ही किसी उपाय को अपनाएँ । मंगल के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए ।