तुला लग्न के स्वामी शुक्र होते है । ये चर राशि है । तुला राशि में वायु तत्त्व की प्रधानता देखने को ,मिलती है । शूद्र वर्ण की ये राशि भचक्र की सातवें स्थान पर आने वाली राशि है । तुला राशि का विस्तार 180 अंश से 210 अंश तक फैला हुआ है । चित्रा के तृतीय, चतुर्थ चरण, स्वाति नक्षत्र के चारों चरण , तथा विशाखा नक्षत्र प्रथम, द्वितीय, तृतीय चरण के संयोग से तुला लग्न बनता है ।
राशि स्वामी शुक्र होने से जातक / जातिका आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं । इन्हे विलासी जीवन शैली भाती है । कालपुरुष की कुंडली में ये दुसरे व् सातवें स्थान का मालिक बनता है । इससे अनुमान लगाया जा सकता है की ये कुशल वक्त व् साथ ही साथ बहुत अच्छे व्यापारी व् साझेदार होते हैं । तराजू चिन्ह दर्शाता है की इनका आचार व्यवहार संतुलित होता है । ऐसे जातक बहुत अच्छे मित्र देखे गए हैं । मित्रों के लिए कुछ भी करने को उत्सुक रहते हैं । इन्हें दान पुण्य करना भाता है और ये महंगे कपड़ों , परफ्यूम आदि के शौक़ीन होते हैं । महंगे होटलों में खाना व् बड़ी गाड़ियों में घूमना इन्हें बहुत रुचिकर लगता है। ऐसा माना जाता है की इन्हे छलना किसी के बस की बात नहीं होती । ये कुशाग्र बुद्धि के मालिक होते हैं । यदि लग्नकुंडली में शुक्र अच्छी जगह स्थित भी हो तो ये एक कुशल अभिनेता होते हैं ।
तुला राशि भचक्र की सातवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 180 अंश से 210 अंश तक फैला हुआ है । चित्रा के तृतीय, चतुर्थ चरण, स्वाति नक्षत्र के चारों चरण , तथा विशाखा नक्षत्र प्रथम, द्वितीय, तृतीय चरण के संयोग से तुला लग्न बनता है ।
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं ।
शुक्र Venus :
तुला लग्न की कुंडली में शुक्र लग्नेश होने से कारक गृह बनता है ।
शनि Saturn :
चौथे व् पांचवें घर का स्वामी होने से अति योगकारक है ।
बुद्ध Mercury :
नवें , बारहवें का स्वामी होने से इस लग्न में कारक बनता है ।
चंद्र Moon :
दशमेश होने से कारक बनता है ।
आपको बताते चलें की अशुभ या मारक गृह भी यदि छठे , आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह , आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे , आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
गुरु Jupiter :
तीसरे व् छठे घर का मालिक है । अतः इस लग्न कुंडली में मारक बनता है ।
मंगल Mars :
दुसरे व् सातवें स्थान का मालिक होने से मारक होता है ।
सूर्य Sun :
एकादशेष होने से मारक होता है ।
तुला लग्न के जातक लग्नेश शुक्र, पंचमेश शनि व् नवमेश बुध से सम्बंधित रत्न हीरा, पन्ना रत्न या नीलम धारण कर सकते हैं । इसके साथ ही किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को भी धारण किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है । यदि वह गृह विशेष तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है! कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है, फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है! इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है! उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है |
ध्यान देने योग्य है की मारक गृह का रत्न धारण करने की सलाह किसी भी सूरत में नहीं दिया जाता है, चाहे वो विपरीत राजयोग की स्थिति में ही क्यों न हो ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।