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धनु लग्न कुंडली (Dhanu Lagna) – जानकारी, विशेषताएँ, शुभ -अशुभ ग्रह

लग्न स्वामी गुरु, चिन्ह धर्नुधर हैं जिसका पीछे का शरीर घोड़े का होता है हाथ में धनुष जिस पर बाण चढ़ा हुआ होता है, तत्व अग्नि, जाति क्षत्रिय, स्वभाव द्विस्भावी, आराध्य बजरंग बलि होते हैं ।

धनु लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Dhanu Lagn jatak – Sagittarius Ascendent

राशि स्वामी वृहस्पति होने से धनु लग्न के जातक कुशाग्र बुद्धि के स्वामी होते हैं । अद्भुत ऊर्जा के स्वामी ऐसे जातक की नजर हमेशा अपने लक्ष्य पर टिकी रहती है जो लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक होती है । जिस काम में लग जाए उसे पूरा करके ही दम लेते हैं । आधा घोडा ,अग्नि तत्व , व् क्षत्रिय वर्ण इनकी तीव्रता दर्शाते हैं । ज्ञान और गति इस राशि का जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण हैं । ये अपनी बात को अथॉरिटी के साथ सबके समक्ष रखते हैं । ज्ञान प्राप्त करने की आकांक्षा इनकी तीव्र होती है । इनके स्वभाव में नैसर्गिक तीव्रता होने से कभी कभार इन्हे घमंडी भी समझ लिया जाता है । स्वभाव से काफी रोमेंटिक होते हैं ।



धनु लग्न के नक्षत्र Dhanu Lagna Nakshatra :

धनु राशि भचक्र की नवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 240 अंश से 270 अंश तक फैला हुआ है । मूल नक्षत्र के चार चरण , पूर्वाषाढा नक्षत्र के चार चरण , व् उत्तराषाढा नक्षत्र के प्रथम चरण के संयोग से धनु लग्न बनता है ।

लग्न स्वामी : गुरु

लग्न चिन्ह : प्रतीक धर्नुधर हैं जिसका पीछे का शरीर घोड़े का होता है हाथ में धनुष जिस पर बाण चढ़ा हुआ होता है

तत्व: अग्नि

जाति: क्षत्रिय

स्वभाव : द्विस्भावी

लिंग : पुरुष संज्ञक

अराध्य/इष्ट : बजरंग बलि

ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं ।


गुरु Jupiter:

लग्नेश होने से कुंडली का कारक गृह बनता है ।

मंगल Mars:

पंचम व् द्वादश का स्वामी है । धनु लग्न में कारक होता है ।

सूर्य Sun:

नवमेश होने से धनु लग्न की कुंडली में एक कारक गृह होता है ।

बुद्ध Mercury :

सप्तमेश , दशमेश होने से इस कुंडली में सम गृह होता है ।

धनु लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Dhanu Lagn – Sagittarius Ascendant

शनि :

द्वितीयेश , तृतीयेश होने से धनु लग्न की कुंडली में एक मारक गृह होता है ।

शुक्र :

छठे व् ग्यारहवें का स्वामी होने से इस लग्न कुंडली में मारक बनता है ।

चंद्र :

अष्टमेश होने से मारक बनता है ।

किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को भी धारण किया जा सकता है , लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है । यदि वह गृह विशेष तीसरे , छठे , आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच

धनु लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Sagittarius Ascendant

लग्नेश गुरु , पंचमेश मंगल व् नवमेश सूर्य कुंडली के कारक गृह हैं । अतः इनसे सम्बंधित रत्न पुखराज , मूंगा व् माणिक धारण किया जा सकता है । इस लग्न कुंडली में बुद्ध सप्तमेश व् दशमेश होकर एक सम गृह बनता है । सौम्य गृह होने से धारण किया जा सकता है । किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को धारण किया जा सकता है , लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है । यदि वह गृह विशेष तीसरे , छठे , आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है । कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है , फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है । इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है । उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है |

ध्यान देने योग्य है की मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में रेकमेंड नहीं किया जाता है , चाहे वो विपरीत राजयोग की स्थिति में ही क्यों न हो ।

कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।

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